Dedicated to Somalwar Ramdaspeth, Batch of 2009
Cherishing the meringue memories and celebrating a decade!

आज काफी अरसों बाद
एक पुरानी
जीर्ण शीर्ण किताब मिली
जिसमे क्रॉस डॉट डॉट क्रॉस सहित
मेरे बचपन की यादें थी जुडी ।

आधी ही भरी थी वो किताब ,
पर लगी जैसी, मुकम्मल सी –
पेन्सिल से अंकित,
परेशानियों से वंचित
खुद में मगन, अल्हड सी ।

खाली थे जो पन्ने
अपनी दास्ताँ सुनाने लगे
कह रहे थे, वक़्त कैसे जाया
होगया पता ही नहीं चला
कुछ चीज़े दोहरानी है,
जारी रखनी है उनकी श्रृंखला ।

स्कूल के कंपाउंड से चढ़कर भागना है
दस सिक्के इक्कट्ठा कर के
चिप्स का पैकेट खरीदना है
एक बार फिरसे, हर चीज़ बाँट के,
जारी कक्षा में भी टिफ़िन खाना है ।

लास्ट बेंच के लिए
घमासान युद्ध करना है,
और एक बार फिरसे ,
वॉशरूम में छुपकर
क्लास बंक करना है ।

अनोखे नाम देने हैं
दोस्तों को और टीचर्स को भी,
और फिर एक बार,
शरारतें पकडे जाने पर
मुर्गा भी बनना है ।

एक बार फिरसे सातवीं
के मैथ्स पेपर में फेल होना हैं,
और एक बार, आधे मार्क के
लिए टीचर से भिड़ना है ।

एक बार फिरसे,
एक बार फिरसे झूठा
लीव एप्लीकेशन लिखना है
और एक्स्ट्रा क्लास है कहकर,
फिल्म देखने मल्टीप्लेक्स जाना है ।

ग्रुप स्टडी के नाम पे
पहले क्रश के साथ
शहर में टहलना है,
और हो सके तो
एक और बार,
पहला प्यार जताना है ।

घंटो बातें करनी हैं
खुद से और दोस्तों से –
उनके पुराने नंबर डायल कर के
एक बार फिरसे
लैंडलाइन का बिल बढ़ाना है ।

माँ डाँटेगी कह कर,
कैसें तो भी टिफीन ख़तम करना है
एक बार फिरसे
दो रूपए के डब्बा कुल्फी का
आनंद खूब लुटना है ।

एक बार फिरसे
साइकिल से गिरना है,
और एक बार फिरसे
पेट में दर्द है कह कर
आधा होमवर्क सबमिट करना है ।

वार्षिक सम्मलेन के लिए
एक बार डांस प्रैक्टिस करनी है
और अपने सेक्शन को
प्रोत्साहित करने के लिए
नया नारा बनाना है ।

एक बार फिरसे दसवीं
की परीक्षा लिखनी है
66425 के रोल नंबर से
धरमपेठ स्कूल में
बिना पढ़े जाना है
आज दस साल बाद
कितना याद है,
जरा यह समझना है ।

वैसे आज भी याद है
सभी के रोल नंबर्स
आज भी दिल में हैं
काफियों के फ़ोन नंबर्स
एक बार मिल बैठ के
किसे कितना याद है
जरा यह देखना है ।

कुछ और लब्ज़ बुनने है,
थोड़ी बचकानी कवितायेँ लिखनी है
और वो कवितायेँ लिख कर,
जबरदस्ती दोस्तों को सुनानी है ।

और हैं काफी चीज़े –
जो सोच के –
रूहानियत का एहसास होता है
और हैं काफी चीज़े
जो सोच के आखोंके
कोने में प्यारा सा आंसू खिल जाता है ।

यह मायाजाल, मायानगरी,
संपत्ति, प्रतिष्ठा, दिखावे के परे
एक बार सोमलवार (स्कूल)
वापस लौटना है ।
और ये जालसाज़
सोशल मीडिया स्टोरीज से दूर
यह असली कहानियो की इनायात
को एक बार फिरसे महसूस करना है ।

और ये जालसाज़
सोशल मीडिया स्टोरीज से दूर
यह असली कहानियो की इनायात
को एक बार फिरसे महसूस करना है ।

I attempted my first Hindi composition yesterday. Do share in comments what you feel. 🙂